-अशोक प्रियरंजन
महाकवि गोस्वामी तुलसी दास द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस समस्त हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है। इसकी चौपाइयों के व्यापक अर्थ हैं और इनमें अद्भुत जीवन दर्शन समाहित है। इसीलिए भारतीय जनमानस को रामचरित मानस ने बहुत गहराई से प्रभावित किया है। इसकेविविध प्रसंग जनमानस को जीवन के कर्मक्षेत्र में आगे बढऩे लिए मार्गदर्शन करते हैं। डॉ. आशुतोष मिश्र की पुस्तक रामचरितमानस का शैली वैज्ञानिक अध्ययन में इस महाकाव्य के विविध पक्षों का शोधपरक अनुशीलन किया गया है। यह पुस्तक इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें रामचरितमानस की भाषिक संवेदना का समग्र विश्लेषण किया गया है। इस महाकाव्य में प्रयुक्त शैलियों, भावव्यक्ति की प्रबलता के लिए प्रयुक्त प्रतीक और बिंब विधान का सोदाहरण विवेचन किया गया है। इसकेसाथ ही शब्द विधान, पद चयन और अर्थ योजना को भी रेखांकित किया गया है। भाषिक नियमों को छोड़कर महाकवि ने नवीन मार्ग का जो अनुकरण किया है, उसकी महत्ता को भी पुस्तक में विवेचित किया गया है। मानस में समान या विरोधी भाषिक इकाइयों की आवृत्ति का समानांतर प्रयोग किया गया है। इससे भाषिक वैशिष्ट्य और शैलीय गरिमा का प्रस्फुटन हुआ है। महाकवि तुलसीदास के रामचरितमानस मानस में अभिव्यक्त विïिïवध भावों के निहितार्थों को बहुआयामी दृष्टिकोण से ग्रहण करने में यह पुस्तक अपनी अलग अर्थवत्ता और महत्ता रखती है। रामचरितमानस के अध्येयताओं के लिए यह सर्वाधिक उपयोगी पुस्तक है।
रामचरितमानस : शैली वैज्ञानिक अध्ययन, लेखक : डॉ. आशुतोष मिश्र, प्रकाशक : निर्मल पब्लिकेशंस, नई दिल्ली, मूल्य : ३०० रुपये।
Friday, December 18, 2009
Friday, December 4, 2009
अनुभूति और संवेदना को जागृत करती कविताएं
- अशोक प्रियरंजन
गोविंद रस्तौगी की कविताएं मौजूदा समाज में पनप रही अपसंस्कृति, सामाजिक मूल्यों के क्षरण, भ्रष्टाचार, पतनशील राजनीति, जीवन में पनप रही निराशा, अकेलेपन, ऊब और भटकाव से साक्षात्कार कराती हैं । उनकी कविताओं में प्रखर आध्यात्मिक चेतना और गंभीर चिंतन की झलक मिलती है । वह मनुष्य की शुष्क होती संवेदनाओं, मानव मन की छटपटाहट को भी रेखांकित करते हैं- 'आंख में आकुल निमंत्रण, ओंठ पर सौजन्यताएं, कब कहां कैसे मिलेंगे, क्या कहें, हम क्या बताएं।Ó शहरी सभ्यता के खोखलेपन पर भी वह गहरा प्रहार करते हैं । यथा- 'लोहा, सीमेंट, ईंट के बढ़ते जंगल में, बीसवीं सदी ने अपने पांव पसार दिए।Ó उनकी कविताओं में प्रकृति, देशप्रेम, पौराणिक आख्यानों से संबंधित प्रसंग भी संपूर्ण गौरव केसाथ विद्यमान हैं । मजदूरों, किसानों और दबे-कुचले लोगों की वाणी को भी उन्होंने शब्दबद्ध किया है । प्रेम भावों और समर्पण को आध्यात्मिक चेतना से संपृक्त करके वह उसे चिंतनपरक बना देते हैं- 'सृष्टि में सौंदर्य की सत्ता समर्पण के लिए है, पंच तत्वों का समन्वय एक अर्पण केलिए है । देह, रस, स्वर, गंध, रूपम राग जीवन के लिए है, पंच भोगों का नियंत्रण आज इस क्षण केलिए है।Ó तमाम सुख सुविधाओं के बीच भी आज मानव मन छटपटा रहा है- 'कैसी कैसी घुटन ऊब छायी मन में, खोलो खोलो द्वार हवाएं आने दो।Ó कथ्य, विचार, भाव और शिल्प की दृष्टि से गोविंद रस्तोगी की कविताएं सहज ही हृदय पर अपनी छाप छोडऩे में समर्थ में है । उनकी कविताओं में विषय का गहन अनुशीलन और शोधपरक दृष्टि का सहज दर्शन होता है । सामाजिक चेतना, आध्यत्मिक प्रखरता और शिल्पगत प्रयोग उन्हें विशिष्ट कवि बनाते हैं। वस्तुत: गोविंद रस्तोगी की कविताएं अनुभूति और संवेदना केअद्भुत संसार से साक्षात्कार कराती हैं ।
हवाएं आने दो, कवि : गोविंद रस्तौगी, प्रकाशक : अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद, मूल्य : ३५० रुपये।
(अमर उजाला, मेरठ, के ०४ दिसंबर २००९ के अंक में प्रकाशित )
गोविंद रस्तौगी की कविताएं मौजूदा समाज में पनप रही अपसंस्कृति, सामाजिक मूल्यों के क्षरण, भ्रष्टाचार, पतनशील राजनीति, जीवन में पनप रही निराशा, अकेलेपन, ऊब और भटकाव से साक्षात्कार कराती हैं । उनकी कविताओं में प्रखर आध्यात्मिक चेतना और गंभीर चिंतन की झलक मिलती है । वह मनुष्य की शुष्क होती संवेदनाओं, मानव मन की छटपटाहट को भी रेखांकित करते हैं- 'आंख में आकुल निमंत्रण, ओंठ पर सौजन्यताएं, कब कहां कैसे मिलेंगे, क्या कहें, हम क्या बताएं।Ó शहरी सभ्यता के खोखलेपन पर भी वह गहरा प्रहार करते हैं । यथा- 'लोहा, सीमेंट, ईंट के बढ़ते जंगल में, बीसवीं सदी ने अपने पांव पसार दिए।Ó उनकी कविताओं में प्रकृति, देशप्रेम, पौराणिक आख्यानों से संबंधित प्रसंग भी संपूर्ण गौरव केसाथ विद्यमान हैं । मजदूरों, किसानों और दबे-कुचले लोगों की वाणी को भी उन्होंने शब्दबद्ध किया है । प्रेम भावों और समर्पण को आध्यात्मिक चेतना से संपृक्त करके वह उसे चिंतनपरक बना देते हैं- 'सृष्टि में सौंदर्य की सत्ता समर्पण के लिए है, पंच तत्वों का समन्वय एक अर्पण केलिए है । देह, रस, स्वर, गंध, रूपम राग जीवन के लिए है, पंच भोगों का नियंत्रण आज इस क्षण केलिए है।Ó तमाम सुख सुविधाओं के बीच भी आज मानव मन छटपटा रहा है- 'कैसी कैसी घुटन ऊब छायी मन में, खोलो खोलो द्वार हवाएं आने दो।Ó कथ्य, विचार, भाव और शिल्प की दृष्टि से गोविंद रस्तोगी की कविताएं सहज ही हृदय पर अपनी छाप छोडऩे में समर्थ में है । उनकी कविताओं में विषय का गहन अनुशीलन और शोधपरक दृष्टि का सहज दर्शन होता है । सामाजिक चेतना, आध्यत्मिक प्रखरता और शिल्पगत प्रयोग उन्हें विशिष्ट कवि बनाते हैं। वस्तुत: गोविंद रस्तोगी की कविताएं अनुभूति और संवेदना केअद्भुत संसार से साक्षात्कार कराती हैं ।
हवाएं आने दो, कवि : गोविंद रस्तौगी, प्रकाशक : अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद, मूल्य : ३५० रुपये।
(अमर उजाला, मेरठ, के ०४ दिसंबर २००९ के अंक में प्रकाशित )
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