Friday, February 19, 2010

जटिल रोगों की सहज जानकारी

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
कनाडा में बसी भारतीय मूल की साहित्यकार स्नेह ठाकुर ने संजीवनी केमाध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का सार्थक प्रयास किया है। इस पुस्तक में उन्होंने विविध रोगों के इलाज और स्वास्थ्य संबंधी परिस्थितियों की जानकारी दी है। पुस्तक में मधुमेह, तनाव, स्त्रियों में हृदयरोग, एस्ट्रोजन थेरेपी, कैंसर, आस्टियोपोरोस्सि, पार्किन्सन, सफेद बाल, नारी मोटापा, तोतलापन, एलर्जी, एल्जाईमर, मानसिक रोग, बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू आदि रोगों के विषय में ३३ आलेख संकलित हैं। इनमें विविध रोगों के विषय में लक्षण, उपचार, बचाव, जटिलताएं, पृष्ठभूमि, विविध शोध संबंधी जानकारियां, चिकित्सकों की राय और पीडि़तों केउद्धरण दिए गए हैं। सहज, सरल और रोचक भाषा में गंभीर और चिकित्सा संबंधी विषयों की प्रस्तुति पुस्तक को पठनीय और उपयोगी बना देती है। इस पुस्तक की सार्थकता इसी बात में निहित है कि एक आम आदमी भी इस पुस्तक के माध्यम से जटिल रोगों केविषय में सूक्ष्म जानकारियां हासिल कर सकता है। पुस्तक सचेत करने केसाथ ही उन अवस्थाओं और स्थितियों पर भी प्रकाश डालती है जिनके चलते कोई व्यक्ति किसी बीमारी का शिकार हो जाता है। साहित्यकार की लेखनी से लिखी इस चिकित्सा संबंधी पुस्तक की इन तमाम कारणों से अपनी अलग उपयोगिता है।
संजीवनी, लेखिका : स्नेह ठाकुर, प्रकाशक : स्टार पब्लिकेशन्स, नई दिल्ली, मूल्य : २५० रुपये।

Monday, February 8, 2010

जिंदगी कीसच्चाई को उजागर करती गजलें

-डॉ. अशोक प्रियरंजन
डॉ. कृष्ण कुमार बेदिल का यह दूसरा गजल संग्रह हथेली पर सूरज मौजूदा दौर के आम आदमी के अंतर्मन की व्यथा, सामाजिक विसंगतियों, जिंदगी की तल्ख हकीकत, राजनीतिक विद्रूपताओं और नित बदल रहे जीवनमूल्यों से रू-ब-रू कराता है। हुस्न और मुहब्बत जैसे कोमल भावों को भी अभिव्यक्त करने का उनका अंदाज अलग है-'छुप के बादली में मुझे चांद चिढ़ाता क्या है, मैं अपने चांद को चिलमन में छोड़ आया हूं।Ó रिश्तों में आए बदलाव हों या आदमी की सोच में या फिर सामाजिक मान्यताओं में, वह बड़ी संजीदगी के साथ सभी को रेखांकित करते हैं और कुछ कड़वी हकीकत से भी रु-ब-रू कराते हैं। यथा-'तहजीब तो पश्चिम की हवाओं में बह गई, रिश्ते बदल रहे हैं जमाने के साथ-साथ। राजनेताओं के चरित्र और राजनीति में उपज रही विसंगतियों को भी वह प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्त करते हैं-'इन अंधेरों की सियासत से कहां डरते हैं, हम तो सूरज को हथेली पे लिए फिरते हैं। जो जमाने की मुहब्बत में हुए हैं कुरबान, ऐसे इन्सान जमाने में कहां मरते हैं। प्रभावशाली कथ्य, बेहतरीन शिल्प और गहन भाषिक संवेदना के चलते इस संग्रह का हर शेर पाठक के दिल पर अपनी छाप छोडऩे में कामयाब है। यह गजल संग्रह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भाषा की गंगा जमुनी संस्कृति को पुष्ट करता है। इसमें गजलों को आमने-सामने केपृष्ठों पर हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रस्तुत किया गया है। इसलिए दोनों भाषाओं के पाठकों के लिए यह उपयोगी है।
हथेली पर सूरज, शायर : डॉ. कृष्ण कुमार बेदिल प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन, मेरठ, मूल्य : १५० रुपये।