tag:blogger.com,1999:blog-45732897323104439732024-03-13T08:26:51.197-07:00sahityakashdr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.comBlogger16125tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-33943538783497235372010-03-13T10:31:00.000-08:002010-03-13T10:41:28.796-08:00मंत्रों की विवेचना<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3x6Zqq6Edl8wiWBG_F6jr90Ryu5m29M0yhNdjsJFw-zIVyTBHLTxwgkGcL-fHLDy40lW-7jYxa-kW7BhR6VWM57bubK2B_-kKflqFwIDeq8NsBhZZ5P1HxMTgxzYd5SAgBDUkRp34VNpf/s1600-h/sameeksha-upnishad.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 216px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3x6Zqq6Edl8wiWBG_F6jr90Ryu5m29M0yhNdjsJFw-zIVyTBHLTxwgkGcL-fHLDy40lW-7jYxa-kW7BhR6VWM57bubK2B_-kKflqFwIDeq8NsBhZZ5P1HxMTgxzYd5SAgBDUkRp34VNpf/s320/sameeksha-upnishad.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5448189539320929842" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-डॉ. अशोक प्रियरंजन</span><br /><span style="font-weight: bold;">मंत्र</span> शक्ति की महत्ता को संपूर्ण आध्यात्मिक जगत ने स्वीकार किया है। मंत्रों केमाध्यम से न केवल ईश कृपा प्राप्त की जा सकती है वरन जीवन में आध्यात्मिक शक्ति अर्जित की जा सकती है। कनाडा मेंं बसी भारतीय मूल की स्नेह ठाकुर ने उपनिषद दर्शन में मंत्रों की सहज, सुगम और सारगर्भित व्याख्या प्रस्तुत की है। उन्होंने मंत्रों की अर्थवत्ता को स्पष्ट करते हुए जीवन में उनकी महत्ता को रेखांकित किया है। गायत्री मंत्र और अन्य १८ मंत्रों में प्रयुक्त संस्कृत के कठिन शब्दों के हिंदी में अर्थ तथा उनकी आध्यात्मिक विवेचना भी प्रस्तुत की गई है।<br /><span style="font-weight: bold;">उपनिषद दर्शन, लेखिका : स्नेह ठाकुर, प्रकाशन :स्टार पब्लिकेशंस, नई दिल्ली, मूल्य : २५० रुपये। </span><br /><br /><span style="font-weight: bold;"></span>dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-91179188033609599432010-02-19T11:19:00.000-08:002010-02-19T11:26:05.216-08:00जटिल रोगों की सहज जानकारी<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUu1GPUhFGg7dU6GZ_gwP1kLYLfj21DXNHk32p-nN2lblqUvsiBiaAfU7IuGXo1FE0Ow1Gxg_NuiekDcH20CUyngGsulQn_lxoxbnPm9OQtnrkus68h4YqrgDVN5sWxsLBMsxlJrDemltm/s1600-h/17comp1.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 215px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUu1GPUhFGg7dU6GZ_gwP1kLYLfj21DXNHk32p-nN2lblqUvsiBiaAfU7IuGXo1FE0Ow1Gxg_NuiekDcH20CUyngGsulQn_lxoxbnPm9OQtnrkus68h4YqrgDVN5sWxsLBMsxlJrDemltm/s320/17comp1.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5440037247922320050" border="0" /></a>-<span style="font-weight: bold;">डॉ</span><span style="font-weight: bold;">. </span><span style="font-weight: bold;">अशोक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">प्रियरंजन</span><br />कनाडा में बसी भारतीय मूल की साहित्यकार स्नेह ठाकुर ने संजीवनी केमाध्यम से लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने का सार्थक प्रयास किया है। इस पुस्तक में उन्होंने विविध रोगों के इलाज और स्वास्थ्य संबंधी परिस्थितियों की जानकारी दी है। पुस्तक में मधुमेह, तनाव, स्त्रियों में हृदयरोग, एस्ट्रोजन थेरेपी, कैंसर, आस्टियोपोरोस्सि, पार्किन्सन, सफेद बाल, नारी मोटापा, तोतलापन, एलर्जी, एल्जाईमर, मानसिक रोग, बर्ड फ्लू और स्वाइन फ्लू आदि रोगों के विषय में ३३ आलेख संकलित हैं। इनमें विविध रोगों के विषय में लक्षण, उपचार, बचाव, जटिलताएं, पृष्ठभूमि, विविध शोध संबंधी जानकारियां, चिकित्सकों की राय और पीडि़तों केउद्धरण दिए गए हैं। सहज, सरल और रोचक भाषा में गंभीर और चिकित्सा संबंधी विषयों की प्रस्तुति पुस्तक को पठनीय और उपयोगी बना देती है। इस पुस्तक की सार्थकता इसी बात में निहित है कि एक आम आदमी भी इस पुस्तक के माध्यम से जटिल रोगों केविषय में सूक्ष्म जानकारियां हासिल कर सकता है। पुस्तक सचेत करने केसाथ ही उन अवस्थाओं और स्थितियों पर भी प्रकाश डालती है जिनके चलते कोई व्यक्ति किसी बीमारी का शिकार हो जाता है। साहित्यकार की लेखनी से लिखी इस चिकित्सा संबंधी पुस्तक की इन तमाम कारणों से अपनी अलग उपयोगिता है।<br /><span style="font-weight: bold;">संजीवनी</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">लेखिका</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">स्नेह</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">ठाकुर</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">प्रकाशक</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">स्टार</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पब्लिकेशन्स</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">नई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दिल्ली</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">मूल्य</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">२५०</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रुपये।</span>dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-19798875818022662522010-02-08T10:50:00.000-08:002010-02-08T10:58:49.008-08:00जिंदगी कीसच्चाई को उजागर करती गजलें<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNRdn8fj38j9f-tumXHNdsBDSdVVKAVQw0A6JntgRj9n6_1tT6UHxNg-K3v5pHhe2z0waSkLptum5D4ZgWoooc1VXFAYu2oZ0PwJJr7F9kuihVUWj0dcbcr7OtqzhK3_pozSMaWShuqJOs/s1600-h/pustak+sameeksha-bedil2.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 202px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhNRdn8fj38j9f-tumXHNdsBDSdVVKAVQw0A6JntgRj9n6_1tT6UHxNg-K3v5pHhe2z0waSkLptum5D4ZgWoooc1VXFAYu2oZ0PwJJr7F9kuihVUWj0dcbcr7OtqzhK3_pozSMaWShuqJOs/s320/pustak+sameeksha-bedil2.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5435949033814062210" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-डॉ. अशोक प्रियरंजन</span><br />डॉ. कृष्ण कुमार बेदिल का यह दूसरा गजल संग्रह हथेली पर सूरज मौजूदा दौर के आम आदमी के अंतर्मन की व्यथा, सामाजिक विसंगतियों, जिंदगी की तल्ख हकीकत, राजनीतिक विद्रूपताओं और नित बदल रहे जीवनमूल्यों से रू-ब-रू कराता है। हुस्न और मुहब्बत जैसे कोमल भावों को भी अभिव्यक्त करने का उनका अंदाज अलग है-'छुप के बादली में मुझे चांद चिढ़ाता क्या है, मैं अपने चांद को चिलमन में छोड़ आया हूं।Ó रिश्तों में आए बदलाव हों या आदमी की सोच में या फिर सामाजिक मान्यताओं में, वह बड़ी संजीदगी के साथ सभी को रेखांकित करते हैं और कुछ कड़वी हकीकत से भी रु-ब-रू कराते हैं। यथा-'तहजीब तो पश्चिम की हवाओं में बह गई, रिश्ते बदल रहे हैं जमाने के साथ-साथ। राजनेताओं के चरित्र और राजनीति में उपज रही विसंगतियों को भी वह प्रभावशाली तरीके से अभिव्यक्त करते हैं-'इन अंधेरों की सियासत से कहां डरते हैं, हम तो सूरज को हथेली पे लिए फिरते हैं। जो जमाने की मुहब्बत में हुए हैं कुरबान, ऐसे इन्सान जमाने में कहां मरते हैं। प्रभावशाली कथ्य, बेहतरीन शिल्प और गहन भाषिक संवेदना के चलते इस संग्रह का हर शेर पाठक के दिल पर अपनी छाप छोडऩे में कामयाब है। यह गजल संग्रह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भाषा की गंगा जमुनी संस्कृति को पुष्ट करता है। इसमें गजलों को आमने-सामने केपृष्ठों पर हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रस्तुत किया गया है। इसलिए दोनों भाषाओं के पाठकों के लिए यह उपयोगी है।<br /><span style="font-weight: bold;">हथेली पर सूरज, शायर : डॉ. कृष्ण कुमार बेदिल प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन, मेरठ, मूल्य : १५० रुपये।</span>dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-75337395439300316282010-01-22T10:15:00.000-08:002010-01-22T10:19:47.348-08:00नई पीढ़ी को आईना दिखा कर संबंधों की पड़ताल<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZgon0Mcm4Nls59SV9iapYl21ZxdKhwD9Qc1CGtU4FskCJDNnxwOgHmuFCH5nFxw-qqLSdtsNvd1h50jNCdDfNDQnmO1aDn5PxCGOBP1qoX2FZjgLFZ423G1d0OX_upjVDf3xOrNAxvm1h/s1600-h/pustak+sameeksha-sudhakar.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 200px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZgon0Mcm4Nls59SV9iapYl21ZxdKhwD9Qc1CGtU4FskCJDNnxwOgHmuFCH5nFxw-qqLSdtsNvd1h50jNCdDfNDQnmO1aDn5PxCGOBP1qoX2FZjgLFZ423G1d0OX_upjVDf3xOrNAxvm1h/s320/pustak+sameeksha-sudhakar.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5429630343551255602" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-</span><span style="font-weight: bold;">डॉ</span><span style="font-weight: bold;">. </span><span style="font-weight: bold;">अशोक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span><span style="font-weight: bold;">प्रियरंज</span>न</span><br />आधुनिक समाज में युवक-युवतियों की मानसिकता में व्यापक परिवर्तन आ रहा है। नई और पुरानी मान्यताओं, परंपराओं, विचारधाराओं के बीच टकराव चल रहा है। पाश्चात्य संस्कृति और सभ्यता भारतीय समाज को बुरी तरह प्रभावित कर रही है। इसी के चलते समाज में कई तरह के बदलाव आ रहे हैं। कोई पुरानी मान्यताओं पर टिका है तो कोई नवीनता को स्वीकार कर रहा है। काला चांद उपन्यास में डॉ. सुधाकर आशावादी ने स्त्री-पुरुष संबंधों को आधार बनाकर इसी वैचारिक परिवर्तन की पड़ताल करते हुए समाज को आईना दिखाया है। उपन्यास के केंद्र में दो नायिकाएं हैं-स्नेहा और सलोनी। दोनों का ही विवाह तय हो जाता है। स्नेहा का विवाह मयंक और सलोनी का प्रशांत से तय होता है। स्नेहा विवाह से पूर्व मयंक को देह समर्पित कर देती जबकि सलोनी ऐसा करने से इनकार कर देती है। इस संबंध के चलते स्नेहा गर्भवती हो जाती है और उसे गर्भपात कराना पड़ता है। बाद में दोनों के मंगेतर विवाह करने से इनकार कर देते हैं। इस पर शर्मिंदगी के कारण स्नेहा का जीवन से मोहभंग हो जाता है जबकि सलोनी अपनी चारित्रिक दृढ़ता से उत्पन्न आत्मविश्वास के कारण जीवन संघर्ष में अग्रसर रहती है। स्नेहा का मंगेतर जब सलोनी के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखता है तो वह उसे सच्चाई का आईना दिखाकर उसे उसके चारित्रिक पतन का अहसास करा देती है। उपन्यास में कथा का ताना-बाना इस तरह बुना गया है कि कहीं पर भी प्रवाह भंग नहीं होता। घटनाएं तेजी से घटित होने के कारण रोचकता बनी रहती है। पात्रों की सृष्टि उनके परिवेश के अनुरूप की गई है। भाषा सरल, सुबोध और शैली वर्णनात्मक और मनोविश्लेषणात्मक है। उपन्यास आधुनिक समाज को सच का आईना दिखाने में समर्थ है।<br /><span style="font-weight: bold;">काला</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">चांद</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">उपन्यासकार</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">डॉ</span><span style="font-weight: bold;">. </span><span style="font-weight: bold;">सुधाकर</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">आशावादी</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">प्रकाशक</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">अनुरोध</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">प्रकाशन</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">नई</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">दिल्ली</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">मूल्य</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">150</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रुपये।</span>dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-47036083690209161902010-01-15T10:56:00.000-08:002010-01-15T11:00:12.611-08:00हिंदी काव्य साहित्य में शकुन-अपशकुन का अनुशीलन<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfMYwnfGxLcrEfunBQ32RJMMo1tdLpuZlXY4bfhxXU6lcpQo8t_GVH-Cee_25_cst0kjTsDYDEKydpMN_-wBHpYv3vbf0qqLTlEEwN1TiPQfemyOAbnO0AwqTfFHFsuhX4IrKmPB85vvqH/s1600-h/pustak-shkun.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 218px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfMYwnfGxLcrEfunBQ32RJMMo1tdLpuZlXY4bfhxXU6lcpQo8t_GVH-Cee_25_cst0kjTsDYDEKydpMN_-wBHpYv3vbf0qqLTlEEwN1TiPQfemyOAbnO0AwqTfFHFsuhX4IrKmPB85vvqH/s320/pustak-shkun.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5427043270850705106" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-डॉ. अशोक प्रियरंजन</span><br />भारतीय समाज में प्रारंभिक काल से शकुन अपशकुन की बड़ी मान्यता रही है। व्यापक समाज शकुनापशकुन का विचार करके ही अपने कार्यों का निष्पादन करता है। डॉ. परमात्मा शरण वत्स ने अपनी पुुस्तक शकुन-अपशकुन में हिंदी साहित्य की विविध कृतियों में इस विषय के प्रसंगों की विवेचना करते हुए शोधपरक दृष्टिकोण से इसकी महत्ता को रेखांकित किया है। उनकी मान्यता है कि दैवी शक्तियां विशिष्ट पशु-पक्षियों की गतिविधियों से भावी शुभ-अशुभ की सूचना प्रदान करती हैं। अंग स्फुरण, स्वप्न और नक्षत्रों आदि की गति के माध्यम से देवी शक्तियों की शुभ-अशुभ इच्छा का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सात अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में शकुनापशकुनों की व्याख्या, उत्पत्ति, विकास, महत्व तथा वर्गीकरण करके हिंदी काव्य में इनकी स्थापनाओं की विवेचना की गई है। काव्य साहित्य में पशु-पक्षी, कीटों, समाजिक जीवन, शारीरिक-मानसिक अवस्थाओं तथा स्वप्नादि से प्राप्त शकुनापशकुन का शोधपरक अनुशीलन किया गया है। कथानक, भाव योजना, रस योजना और परिस्थिति चित्रण की दृष्टि से भी इनका महत्व निरूपित किया गया है। उपसंहार में विभिन्न कालों में काव्य में शकुन-अपशकुन का तुलनात्मक अध्ययन और नई कविता में इनके प्रयोग की स्थिति और संभावनाओं पर भी विचार किया गया है। इस कृति की महत्ता इस तथ्य में निहित है कि विषय का तर्कसंगत प्रतिपादन व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण से किया गया है। हिंदी काव्य साहित्य केआदिकाल से लेकर आधुनिक युग तक की रचनाओं में शकुन विचार का विश्लेषण किया गया है। निसंदेह हिंदी काव्य साहित्य के अनुशीलन में डॉ. परमात्मा शरण वत्स की इस कृति की विशिष्ट महत्ता है।<br /><span style="font-weight: bold;">शकुन-अपशकुन, लेखक : डॉ. परमात्मा शरण वत्स, प्रकाशक : अर्चना पब्लिकेशन्स, मेरठ, मूल्य : 500 रुपये।</span>dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-37758434165378335232010-01-09T10:23:00.000-08:002010-01-09T10:30:25.074-08:00आधी दुनिया पर वैचारिक चिंतन<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7mbvdwknVa3QzYmiEYX4aTrl0NncqhJs5z_kzxCEsaSfksUQRw29-QUAfxCiStnim8MzO7Ok8aKihYgoSQIrelSPWMr0tUogFizXwkAqVBjq9f6YEYf4UK9D85N_kgu3SEhh85_vhRMmn/s1600-h/pustak+sameeksha-sudha.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 214px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg7mbvdwknVa3QzYmiEYX4aTrl0NncqhJs5z_kzxCEsaSfksUQRw29-QUAfxCiStnim8MzO7Ok8aKihYgoSQIrelSPWMr0tUogFizXwkAqVBjq9f6YEYf4UK9D85N_kgu3SEhh85_vhRMmn/s320/pustak+sameeksha-sudha.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5424808217060147330" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-डॉ. अशोक प्रियरंजन</span><br />स्त्री विमर्श पर विविध आयामों और दृष्टिकोणों से चिंतन की कड़ी में सुधा सिंह ने भी आधी दुनिया के दुख, सुख, समस्याओं और त्रासद स्थितियों को सार्थक और प्रभावशाली रूप से अभिव्यक्त किया है। नारी चिंतन को उन्होंने व्यक्तिगत, राष्ट्रीय और सामाजिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करके विचारों को बहुआयामी बनाया है। उनके विचार सामान्य महिला के लिए भी उतने ही सार्थक हैं जितने किसी उच्च वर्ग की साधन संपन्न महिला के लिए। नारी अंतर्मन की पीड़ा को पुरातन और आधुनिक संदर्भों से जोड़कर उन्होंने व्यापक रूप में रेखांकित किया है। नारी शिक्षा का महत्व, भ्रूण हत्या : एक अपराध, स्वावलंबी कैसे बनें, स्वास्थ्य की देखभाल, रिश्तों का महत्व समझें, बच्चों का पालन-पोषण और विकास, समय प्रबंधन कैसे करें, बढ़ती उम्र और देखभाल तथा अस्मिता पर प्रहार शीर्षक से नौ अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में उन्होंने नारी जीवन के गौरव, अस्मिता, विडंबना, त्रासदी, त्याग और आधुनिक समाज में बदलती भूमिका को रेखांकित किया है। विषय को छोटे-छोटे उपशीर्षकों में विभक्त करके उसे अधिक संप्रेषणीय, सरल और प्रवाहमय बना दिया है। सरल, सुबोध भाषा में गंभीर विषयों को अभिव्यक्त करके सुधा सिंह ने पुस्तक की पठनीयता को विस्तार दे दिया है। नारी की स्थिति को लेकर उपजी उनकी चिंता जहां कई समसामायिक प्रश्नों को उठाती है, वहीं उनके समाधान के लिए भी वैचारिक विश्लेषण करती है। यही बात पुस्तक को उपयोगी बना देती है।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">नारी समस्या और समाधान, लेखिका : डॉ. सुधा सिंह , प्रकाशक : हरबंस लाल एंड संस, नई दिल्ली, मूल्य : 200<span> रुपये।</span> </span><br /><br />(अमर उजाला, मेरठ 0 8 जनवरी 2010 केअंक में प्रकाशित)dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-65542221175941941142010-01-02T04:52:00.000-08:002010-01-02T04:58:19.084-08:00जीवन की त्रासदी से रू-ब-रू कराती गजलें<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyppBwRuHz2NeEOtM_Qu-mw5sEqlS6kXIKH_lW4BfpG03bEwko7vSxNfYLsRz2C4Uvn1-gI7A_7MoXm2Uzqk_5-QZq2pjLktO6r2jaJm5AqUjB2JWfjwfrvteU7I8guMRHbbjTbqrjEciq/s1600-h/pustak+sameeksha-bhartiya.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 222px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyppBwRuHz2NeEOtM_Qu-mw5sEqlS6kXIKH_lW4BfpG03bEwko7vSxNfYLsRz2C4Uvn1-gI7A_7MoXm2Uzqk_5-QZq2pjLktO6r2jaJm5AqUjB2JWfjwfrvteU7I8guMRHbbjTbqrjEciq/s320/pustak+sameeksha-bhartiya.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5422125933473371202" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-डॉ. अशोक </span><span style="font-weight: bold;">प्रियरंजन</span><br />मौजूदा दौर की सामाजिक, राजनीतिक विसंगतियों, आम आदमी की संवेदना, दलित जीवन की त्रासदी, मानवीयता के क्षरण से उपजी स्थितियों को डॉ. राम गोपाल भारतीय ने अपने गजल संग्रह 'हाशिए के लोगÓ में बड़े प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त किया है। समाज के शोषित वर्ग की आवाज को गजलों में शब्दबद्ध करते हुए उन्होंने विराट संवेदना और मानवीय पीड़ा से साक्षात्कार कराया है। अनुभूति, अभिव्यक्ति और शिल्प के स्तर पर उनकी गजलें अपनी अलग पहचान बनाने में समर्थ हैं। शिल्प, प्रयोगधर्मिता, मुहावरों, प्रतीकों और बिम्बों के सार्थक प्रयोग से उनकी गजलों को प्रभावोत्पादकता बढ़ जाती है। बड़ी सहजता से वह गंभीर कथ्य को भी शब्दबद्ध कर देते हैं और कुछ सवाल खड़े करके ङ्क्षचतन के लिए भी प्रेरित करते हैं। यथा-'हजार साल से बैठे हैं दूर सूरज से, हमें भी धूप का हक है हुजूर सूरज से। ये कैसी रात है जिसकी सुबह नहीं होती, जवाब चाहिए हमको जरूर सूरज से।Ó राजनीतिक कुटिलता, भ्रष्टाचार और अनीति से त्रस्त होकर उनकी पीड़ा कुछ इस तरह मुखर हुई है- 'इस तरह से जश्ने आजादी मनाया जाएगा, मंच पर गूगों से अब भाषण कराया जाएगा।Ó समाज के शोषित वर्ग को कदम-कदम पर अपमान, तिरस्कार और कष्ट सहन करने होते हैं। इसके बावजूद वह आवाज उठाने में समर्थ नहीं हैं। उनकी इस स्थिति को ये पंक्तियां अभिव्यक्त करती हैं- 'ये बिचारे क्या कहेंगे, हाशिए के लोग हैं. चुप रहे हैं, चुप रहेंगे, हाशिए के लोग हैं।Ó सामाजिक मान्यताएं भौतिकवादी परिवेश में लगातार बदल रही हैं और उनके दुष्परिणामों पर कोई विचार नहीं कर रहा है। इसी से समाज में विसंगतियां भी बढ़ रही हैं। इसीलिए वह लिखते हैं-'कांटे अब गमलों में पाले जाएंगे, खुशबू वाले फूल निकाले जाएंगे।Ó वस्तुत: रामगोपाल भारतीय आधुनिक समाज में पनप रही विविध विडंबनाओं और आम आदमी की त्रासद स्थितियों और पीड़ादायक मनोदशाओं को शिल्प की दृष्टि से पुख्ता गजलों के माध्यम से उभारने में सफल रहे हैं।<br /><span style="font-weight: bold;">हाशिए केलोग, डॉ. राम गोपाल भारतीय, प्रकाशक : कादम्बरी प्रकाशन, दिल्ली, मूल्य : १५० रुपये।</span><br />(अमर उजाला, मेरठ के०१ जनवरी २०१० केअंक में प्रकाशित)dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-15681698535558519462009-12-18T10:59:00.000-08:002009-12-18T11:04:49.713-08:00रामचरितमानस के शैली पक्ष का अनुशीलन<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8rJzqv27WvABK4yBhv_iavVnfgeVpiKxcLMYYSjgJPgjskOesszmNXvCoh0eyzkOOTysKzBs0hit2HudK-1R7GK58ly1Hcf1Nwrj0406qlMQ3tBWPkajkqQ2NUq0SUWhNS5rSxSLGOgOw/s1600-h/pustak-ramcharitra+manas.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 218px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8rJzqv27WvABK4yBhv_iavVnfgeVpiKxcLMYYSjgJPgjskOesszmNXvCoh0eyzkOOTysKzBs0hit2HudK-1R7GK58ly1Hcf1Nwrj0406qlMQ3tBWPkajkqQ2NUq0SUWhNS5rSxSLGOgOw/s320/pustak-ramcharitra+manas.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5416654005323796754" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-अशोक प्रियरंजन</span><br />महाकवि गोस्वामी तुलसी दास द्वारा रचित महाकाव्य रामचरितमानस समस्त हिंदुओं की आस्था का केंद्र रहा है। इसकी चौपाइयों के व्यापक अर्थ हैं और इनमें अद्भुत जीवन दर्शन समाहित है। इसीलिए भारतीय जनमानस को रामचरित मानस ने बहुत गहराई से प्रभावित किया है। इसकेविविध प्रसंग जनमानस को जीवन के कर्मक्षेत्र में आगे बढऩे लिए मार्गदर्शन करते हैं। डॉ. आशुतोष मिश्र की पुस्तक रामचरितमानस का शैली वैज्ञानिक अध्ययन में इस महाकाव्य के विविध पक्षों का शोधपरक अनुशीलन किया गया है। यह पुस्तक इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें रामचरितमानस की भाषिक संवेदना का समग्र विश्लेषण किया गया है। इस महाकाव्य में प्रयुक्त शैलियों, भावव्यक्ति की प्रबलता के लिए प्रयुक्त प्रतीक और बिंब विधान का सोदाहरण विवेचन किया गया है। इसकेसाथ ही शब्द विधान, पद चयन और अर्थ योजना को भी रेखांकित किया गया है। भाषिक नियमों को छोड़कर महाकवि ने नवीन मार्ग का जो अनुकरण किया है, उसकी महत्ता को भी पुस्तक में विवेचित किया गया है। मानस में समान या विरोधी भाषिक इकाइयों की आवृत्ति का समानांतर प्रयोग किया गया है। इससे भाषिक वैशिष्ट्य और शैलीय गरिमा का प्रस्फुटन हुआ है। महाकवि तुलसीदास के रामचरितमानस मानस में अभिव्यक्त विïिïवध भावों के निहितार्थों को बहुआयामी दृष्टिकोण से ग्रहण करने में यह पुस्तक अपनी अलग अर्थवत्ता और महत्ता रखती है। रामचरितमानस के अध्येयताओं के लिए यह सर्वाधिक उपयोगी पुस्तक है।<br /><br /><span style="font-weight: bold;">रामचरितमानस</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">शैली</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">वैज्ञानिक</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">अध्ययन</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">लेखक</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">डॉ</span><span style="font-weight: bold;">. </span><span style="font-weight: bold;">आशुतोष</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">मिश्र</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">प्रकाशक</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">निर्मल</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">पब्लिकेशंस</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">नई</span> <span style="font-weight: bold;">दिल्ली</span><span style="font-weight: bold;">, </span><span style="font-weight: bold;">मूल्य</span><span style="font-weight: bold;"> : </span><span style="font-weight: bold;">३००</span><span style="font-weight: bold;"> </span><span style="font-weight: bold;">रुपये।</span>dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-56232410686861307342009-12-04T08:26:00.000-08:002009-12-04T08:28:38.304-08:00अनुभूति और संवेदना को जागृत करती कविताएं<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiP4PSB5kgrkWxwYbbcQERU8vAFkqL95n8TVY2c0zFmxT8_FggCjxOsIroLx5a2fibZ6qrzS-r4Hmpc1zD1gX7V_3WFCYHQG51BpOP-OPNv7Vk1Gdo1YXDAnhcraIm_-TICJtNxn1yzuULf/s1600-h/pustak-havaein+aane+do.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 194px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiP4PSB5kgrkWxwYbbcQERU8vAFkqL95n8TVY2c0zFmxT8_FggCjxOsIroLx5a2fibZ6qrzS-r4Hmpc1zD1gX7V_3WFCYHQG51BpOP-OPNv7Vk1Gdo1YXDAnhcraIm_-TICJtNxn1yzuULf/s320/pustak-havaein+aane+do.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5411418720867089394" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">- अशोक प्रियरंजन</span><br />गोविंद रस्तौगी की कविताएं मौजूदा समाज में पनप रही अपसंस्कृति, सामाजिक मूल्यों के क्षरण, भ्रष्टाचार, पतनशील राजनीति, जीवन में पनप रही निराशा, अकेलेपन, ऊब और भटकाव से साक्षात्कार कराती हैं । उनकी कविताओं में प्रखर आध्यात्मिक चेतना और गंभीर चिंतन की झलक मिलती है । वह मनुष्य की शुष्क होती संवेदनाओं, मानव मन की छटपटाहट को भी रेखांकित करते हैं- 'आंख में आकुल निमंत्रण, ओंठ पर सौजन्यताएं, कब कहां कैसे मिलेंगे, क्या कहें, हम क्या बताएं।Ó शहरी सभ्यता के खोखलेपन पर भी वह गहरा प्रहार करते हैं । यथा- 'लोहा, सीमेंट, ईंट के बढ़ते जंगल में, बीसवीं सदी ने अपने पांव पसार दिए।Ó उनकी कविताओं में प्रकृति, देशप्रेम, पौराणिक आख्यानों से संबंधित प्रसंग भी संपूर्ण गौरव केसाथ विद्यमान हैं । मजदूरों, किसानों और दबे-कुचले लोगों की वाणी को भी उन्होंने शब्दबद्ध किया है । प्रेम भावों और समर्पण को आध्यात्मिक चेतना से संपृक्त करके वह उसे चिंतनपरक बना देते हैं- 'सृष्टि में सौंदर्य की सत्ता समर्पण के लिए है, पंच तत्वों का समन्वय एक अर्पण केलिए है । देह, रस, स्वर, गंध, रूपम राग जीवन के लिए है, पंच भोगों का नियंत्रण आज इस क्षण केलिए है।Ó तमाम सुख सुविधाओं के बीच भी आज मानव मन छटपटा रहा है- 'कैसी कैसी घुटन ऊब छायी मन में, खोलो खोलो द्वार हवाएं आने दो।Ó कथ्य, विचार, भाव और शिल्प की दृष्टि से गोविंद रस्तोगी की कविताएं सहज ही हृदय पर अपनी छाप छोडऩे में समर्थ में है । उनकी कविताओं में विषय का गहन अनुशीलन और शोधपरक दृष्टि का सहज दर्शन होता है । सामाजिक चेतना, आध्यत्मिक प्रखरता और शिल्पगत प्रयोग उन्हें विशिष्ट कवि बनाते हैं। वस्तुत: गोविंद रस्तोगी की कविताएं अनुभूति और संवेदना केअद्भुत संसार से साक्षात्कार कराती हैं ।<br />हवाएं आने दो, कवि : गोविंद रस्तौगी, प्रकाशक : अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद, मूल्य : ३५० रुपये।<br /><br />(अमर उजाला, मेरठ, के ०४ दिसंबर २००९ के अंक में प्रकाशित )dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-28061264443416141182009-11-28T10:00:00.000-08:002009-11-28T10:13:01.358-08:00जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराती गजलें<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBE5RHhSwe6ggq0ARVxdPIq0R3g5l504VWm5iVN7HLsTLCD-i9DYHGrkyPj4Ylq6n6bn-ZsCtlRwtm1l4A7F1O164-9xiGiZnGIgIaop_B7ZHWfrzWBulKx3NH_MStNEKBEseyEq3WIlW_/s1600/18comp4.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 208px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBE5RHhSwe6ggq0ARVxdPIq0R3g5l504VWm5iVN7HLsTLCD-i9DYHGrkyPj4Ylq6n6bn-ZsCtlRwtm1l4A7F1O164-9xiGiZnGIgIaop_B7ZHWfrzWBulKx3NH_MStNEKBEseyEq3WIlW_/s320/18comp4.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5409219041204593026" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-अशोक प्रियरंजन</span><br />उर्दू के साथ ही हिंदी में भी खास पहचान बनाने वाले शायर राम अवतार गुप्ता 'मुज्तरÓ की गजलें जिंदगी की हकीकत से रूबरू कराती हैं । 'सीपियों में समंदरÓ उनकी हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं की गजलों का संग्रह है जिसमें उन्होंने जहां सियासत और मौजूदा समाज में पनप रही विसंगतियों को रेखांकित किया है वहीं इश्क, मोहब्बत से जुड़ी कोमल भावनाओं को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है । मौजूदा दौर की कड़वी हकीकत को वह कुछ इस तरह बयां करते हैं-'आड़ में अम्नो-अमां की हादसे बोए गए, रोशनी के वास्ते शोलों को भड़काया गया।Ó प्रेम भावना की बुलंदी को भी बड़ी गहराई से महसूस करके शब्दबद्ध करते है-'बोसा इक तूने हथेली पै मेरी क्या रक्खा, मैं जिधर हाथ उठाऊं तेरी खुशबू निकले।Ó वह संघर्ष करना जिंदगी की नियति मानते हंै-'जीवन की राहों में इन्सां गम से भागे भाग न पाए, शीश महल का पंछी जैसे टकरा-टकरा कर मर जाए।Ó मुज्तर की साफगोई, पुख्ता शायरी, बयान करने का अंदाज, हिंदी और उर्दू दोनों में प्रखर भाषिक संवेदना उन्हें उम्दा शायर के रूप में स्थापित करती है। उनकी सोच का फलक बहुत व्यापक है । जिंदगी और इससे जुड़ी विविध संवेदनाओं को उन्होंने बहुआयामी दृष्टिकोण से गजलों में उतारा है । इस नाते हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में राम अवतार गुप्ता और उनके इस गजल संग्रह का अहम मुकाम है। <br />सीपियों में समंदर, राम अवतार गुप्ता 'मुज्तरÓ, प्रकाशक : बेनजीर प्रिंटर्स, नजीबाबाद, मूल्य : १५० रुपये।<br /><br />(अमर उजाला, मेरठ के २७ नवंबर २००९ केअंक में भी प्रकाशित)dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-59062088840052212842009-11-21T09:26:00.000-08:002009-11-21T09:42:11.057-08:00कौरवी लोक साहित्य का विश्लेषण<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyr1Cf4Xm5EthQeOOrHWdCWm1YQnbsqqk9gAzRKJpBye3Nfhec-7qk08veBqZotXWF9J719cWexj4aQnInIK0ISOQlSIroU1Gc00WZ2bPRzv6EbgSJkGUlTaS9jfQQulqOJY-xS1cRyjoJ/s1600/18comp2.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 211px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyr1Cf4Xm5EthQeOOrHWdCWm1YQnbsqqk9gAzRKJpBye3Nfhec-7qk08veBqZotXWF9J719cWexj4aQnInIK0ISOQlSIroU1Gc00WZ2bPRzv6EbgSJkGUlTaS9jfQQulqOJY-xS1cRyjoJ/s320/18comp2.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5406613073961568322" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">- अशोक प्रियरंजन</span><br />हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय रूप में खड़ी बोली ने पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है । खड़ी बोली का आधार है मेरठ, सहारनपुर, बुलंदशहर और दिल्ली के आसपास बोली जाने वाली कौरवी । खड़ी बोली का तो तेजी से विकास हुआ लेकिन विविध कारणों से कौरवी सिर्फ बोलने तक सीमित होकर रह गई । कौरवी में राग-रागनियां, आल्हा, लोकगाथाएं, स्वांग, कहानियां, होली, भजन, धार्मिक और सामाजिक गीत लिखे गए लेकिन अधिकांश वाचिक परंपरा तक ही सीमित होकर रह गए । प्रकाशित सामग्री का अभाव इस बोली के विकास में बड़ी बाधा बना रहा । इस पुस्तक में कौरवी के क्षेत्र, भाषागत रूप और साहित्य की सम्यक विवेचना तो की ही गई है साथ ही विभिन्न विधाओं की प्रमुख रचनाओं को भी प्रस्तुत किया गया है । ग्यारह अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में कौरवी बोली के विविध पक्षों का शोधपरक अनुशीलन किया गया है । कौरवी के क्षेत्र, प्रमुख रचनाकार, लोक साहित्य के रूप यथा लावनी, नौटंकी, झूलना, ख्याल आदि का सोदाहरण विश्लेषण किया गया है । कौरवी लोककथाओं पर भी प्रकाश डाला गया है । मेरठ परिक्षेत्र के जनकवियों के काव्य में सामाजिक, राजनीतिक जागृति के स्वरों को भी रेखांकित किया गया है । परिशिष्ट में प्रस्तुत सामग्री की अपनी अलग उपादेयता है । वस्तुत: डॉ. नवीन चंद्र लोहनी की यह किताब इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इसमें कौरवी भाषा और साहित्य के व्यापक सरोकारों को रेखांकित करते हुए उसके विविध पक्षों का शोधपरक गहन विश्लेषण, तार्किक विवेचन किया गया है और सामायिक संदर्भों में उसकी महत्ता को चिह्नित किया गया है ।<br />कौरवी लोक साहित्य, लेखक: डॉ. नवीन चंद्र लोहनी, सहयोगी-डॉ. रवींद्र कुमार, सीमा शर्मा, प्रकाशक : भावना प्रकाशन, दिल्ली, मूल्य : २५० रुपये ।<br /><br />(अमर उजाला, मेरठ के २० नवंबर के अंक में प्रकाशित)dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-36401979963066324722009-11-14T10:23:00.000-08:002009-11-14T10:35:49.432-08:00सूक्ष्म संवेदनाओं की अभिव्यक्ति<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTTZbQEdjRR_pV4wNpGXFH-RhRDwIhy2YlMkWOHLwzukXDn9Jf-rdK7lrGTuTLifTAxSCNSuIYYWA0lm3TDTGaWnjqpjDbD4gJtMSZzGtzgpsbnbI5FZSDE3HLXFY1yZISibgnKqhgKD1S/s1600-h/pustak-teen.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 208px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjTTZbQEdjRR_pV4wNpGXFH-RhRDwIhy2YlMkWOHLwzukXDn9Jf-rdK7lrGTuTLifTAxSCNSuIYYWA0lm3TDTGaWnjqpjDbD4gJtMSZzGtzgpsbnbI5FZSDE3HLXFY1yZISibgnKqhgKD1S/s320/pustak-teen.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5404029751015488370" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-अशोक प्रियरंजन</span><br />इस संग्रह की कविताओं में तीन कवियों ने आधुनिक जीवन की सूक्ष्म संवेदनाओं को अभिव्यक्ति दी है। निर्मल गुप्त की कविताएं कथ्य की सरलता, सहज शिल्प, बिम्ब, प्रतीक, नए मुहावरों के कारण ध्यान खींचती हैं । बड़ी कलात्मकता से उन्होंने मनुष्य और समाज में पनप रहे तनाव और जिंदगी के संघर्ष को रेखांकित किया है । 'नहाती हुई लड़की शीर्षक कविता में वह लिखते हैं- लड़की नहाती है/तो उसके पोर-पोर में समा जाते हैं असंख्य जल-बिंदु/ तब वह स्वत: ही मुक्त हो जाती है गुरुत्वाकर्षण से/ और चल देती है/ हजारों प्रकाश-वर्ष की अनंत यात्रा पर।Ó दूसरे कवि राजन स्वामी की कविताएं आम जिंदगी पर पनप रहे तनाव और सामाजिक मूल्यों के पतन की ओर संकेत करती है । नन्हीं बिटिया की डायरी से में वे लिखते हैं-'हे भगवान, अफसर की गलती हो या पापा की कुंठा, मार मैं ही खाती हूं, कभी कभी लगता है कि दफ्तर पापा नहीं, मैं जाती हूं ।Ó तीसरे कवि दीपक कुमार श्रीवास्तव मनुष्य के अंतद्र्वंद, सामाजिक विडंबनाओं, अकेलेपन और परिस्थितियों से उपजे तनाव को रेखांकित करते हैं । द्वंद्व में वह लिखते हैं-'दोहरी होती गई हर चीज, दोहरी होती जिंदगी के साथ। आस्थाएं, विश्वास, कर्तव्य, आत्मा और फिर उसकी आवाज।Ó सभी तीन कवियों की कविताएं कथ्य की नवीनता के कारण काफी आश्वस्त करती हैं ।<br />तीन, निर्मल गुप्त, राजन स्वामी, दीपक कुमार श्रीवास्तव : स्वर्ण-रामेश्वर पब्लिकेशन्स मेरठ, मूल्य : ५० रुपये।<br />(अमर उजाला, मेरठ के १३ नवंबर के अंक में प्रकाशित)dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-27693253299117220572009-11-07T11:01:00.000-08:002009-11-07T11:04:14.650-08:00आम आदमी की पीड़ा<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiV5MfsbcJoUGy6pN3jxSSv0JKVEiBJ6QtVgXoS9rj4DWVOKBVS5TiJZDu7CAZ1WzNG2pYTKaOGIm-CtlJ3iJwfnXuTV6abMcNl4ULfQzQEynDjsBJTEzr-O8HsapL221D9u4w3IhEA0Jq9/s1600-h/ajeeb+sa+mousam.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 203px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiV5MfsbcJoUGy6pN3jxSSv0JKVEiBJ6QtVgXoS9rj4DWVOKBVS5TiJZDu7CAZ1WzNG2pYTKaOGIm-CtlJ3iJwfnXuTV6abMcNl4ULfQzQEynDjsBJTEzr-O8HsapL221D9u4w3IhEA0Jq9/s320/ajeeb+sa+mousam.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5401439505623970722" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-अशोक प्रियरंजन</span><br />जिंदगी के विविध रंगों से रूबरू कराती इन गजलों में मौजूदा दौर केआम आदमी की पीड़ा मुखर है । बदलते दौर में पनप रही समस्याओं, संवेदनहीनता, विसंगितयों, निराशा, अस्तित्व संकट और इंसानियत के संकट को गजलों में रेखांकित किया गया है । 'अजीब सा मौसमÓ में शामिल गजलों में राजन स्वामी ने हिंदी-उर्दू शब्दों का प्रभावशाली प्रयोग करते हुए सूक्ष्म संवेदनाओं को बड़े मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया है । 'बच्चों के अरमानों का कद मेरी हद को लांघ गया, अब मेरा अपने ही घर में आना-जाना मुश्किल हैÓ जैसे शेर नई पीढ़ी की महत्वाकांक्षाओं को रेखांकित करते हैं । 'हरेक शख्स ने कुदरत को इस कदर लूटा, कभी अमीर था, अब है गरीब सा मौसमÓ शेर में पेड़ों केअंधाधुंध कटान की ज्वलंत समस्या पर अंगुली रखी गई है । मानवीय जीवन की विवशताओं, कुर्सी की राजनीति, आदमी के भटकाव, हताशा, महानगर की समस्याओं को भी बड़ी गंभीरता के साथ अभिव्यक्त किया गया है । गजलों के शेर दिल पर दस्तक देते महसूस होते हैं । वस्तुत: राजन स्वामी का ये गजल संग्रह पाठकों के सामने कई सवाल खड़े करते हुए वैचारिक मंथन के लिए विवश कर देता है। कथ्य, शिल्प और भाषा केस्तर पर गजलें मन को सुकून देती हैं और कई संभावनाओं को जागृत करती हैं ।<br /><br />अजीब सा मौसम, राजन स्वामी : स्वर्ण रामेश्वर पब्लिकेशन्स, मेरठ, मूल्य : ७७ रुपये ।<br /><br />(अमर उजाला, मेरठ के ३० अक्तूबर २००९ के अंक में प्रकाशित)dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-8932197009626311432009-10-23T11:02:00.001-07:002009-10-23T11:10:24.380-07:00आईना दिखाती गजलें<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3c_VlVtVCbHxBYMYWWji-bbhaobUe6H2oSY2sveeC2ZgJLy1Ia0B4NstvmUARbWvVA_DFZKC1lc_bL3gWCXCw5Qg7ZB4txzL65EkSWeTJWDuxzwLh8XjcfYpBdCE0TeExC80H6Gt4SCbd/s1600-h/mom+ka+ghar.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 205px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3c_VlVtVCbHxBYMYWWji-bbhaobUe6H2oSY2sveeC2ZgJLy1Ia0B4NstvmUARbWvVA_DFZKC1lc_bL3gWCXCw5Qg7ZB4txzL65EkSWeTJWDuxzwLh8XjcfYpBdCE0TeExC80H6Gt4SCbd/s320/mom+ka+ghar.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5395857580463890434" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-</span><span style="font-weight: bold;">अशोक</span><span style="font-weight: bold;"> प्रियरंजन</span><br />कृष्ण कुमार 'बेदिलÓ की गजलें जिंदगी की तल्ख सचाईयों को बड़े बेलौस तरीके से उजागर करती हैं । आधुनिक समाज में व्याप्त विसंगतियों, इंसानियत के पतन, मनुष्य के दोहरे चरित्र और विविध कारणों से जिंदगी में पनप रही पीड़ा को उनके शेर बड़ी गहराई से रेखांकित करते हैं । मोम का घर में शामिल गजलें बदलतें समाज के लोगों को आईना दिखाकर उन्हें भविष्य के खतरों से भी सचेत करती हैं । 'चोंच में दाना दबाये है परिंद, उड़ रहा है भीगकर बरसात मेंÓ और 'मोम का एक घर बनाया है, धूप का आज उस पे साया हैÓ-जैसे शेर जिंदगी के संघर्ष को बड़ी बारीकी से परत दर परत खोलते हैं । उनकी गजलों के अनेक शेर राजनीतिक विसंगतियों, सामाजिक रुढिय़ों और मानवीय दुर्बलताओं पर कटाक्ष भी करते हैं और कई समसामायिक ज्वलंत प्रश्नों से साक्षात्कार कराते हैं । इन ८० गजलों में जिंदगी के रंग दिखाई देते हैं । गजलों की भाषिक संरचना में हिंदी और उर्दू के शब्द शामिल हैं और विषयवस्तु की अभिव्यक्ति बड़ी प्रखर है। बेहतरीन शिल्प, प्रभावशाली कथ्य और विविध विषयों के सामाजिक सरोकारों की व्यापक अभिव्यक्ति से यह संग्रह गजल परंपरा में अहम मुकाम बनाने की सामथ्र्य रखता है ।<br />मोम का घर, कृष्ण कुमार 'बेदिलÓ : महावीर एंड संस, नई दिल्ली, मूल्य : १५० रुपये ।<br />(अमर उजाला, मेरठ के २३ अक्तूबर के अंक में प्रकाशित )dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-80351003033608680802009-10-10T11:43:00.000-07:002009-10-10T11:59:30.134-07:00तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiER9KGEnoM1BD_VR5bE0SrYANJRCHGCvXi2MQQ9LrvY7GwXf-lA-68qQ0c_awfTuTio0P-BRFQn739ZjuX65M_3qHp8EXPb1sy14D2LkSFgoTNcCDUmDzydX7Y30KP07huWkw98SrBwN0O/s1600-h/poet+bharat+bhushan.jpg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 251px; height: 320px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiER9KGEnoM1BD_VR5bE0SrYANJRCHGCvXi2MQQ9LrvY7GwXf-lA-68qQ0c_awfTuTio0P-BRFQn739ZjuX65M_3qHp8EXPb1sy14D2LkSFgoTNcCDUmDzydX7Y30KP07huWkw98SrBwN0O/s320/poet+bharat+bhushan.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5391045989029341378" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-</span><span style="font-weight: bold;">डॉ</span><span style="font-weight: bold;">. अशोक कुमार मिश्र</span><br />मेरठ शहर का घनी आबादी वाला मुहल्ला है ब्रह्मपुरी । दिल्ली रोड के करीब बसे इसी मुहल्ले के मुख्य मार्ग पर है परशुराम हलवाई की दुकान, जिससे सटी गली में है हिंदी काव्य मंच के समर्थ गीतकार भारत भूषण का मकान । गली में घुसने पर जो पहला व्यक्ति मिला, उससे मैंने भारत भूषण का घर पूछा, तो सामने के एक मकान की ओर उसने तर्जनी से संकेत किया। काले रंग से रंगे गेट को खोला और वहां सफाई कर रही महिला से मैंने भारत जी के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि वह आ रहे हैं ।<br />पीछे मुड़ा, तो हाथ में थाली लिए भारत भूषण मंदिर से लौट रहे थे । कदमों में कुछ डगमगाहट थी, जिसे वह छड़ी के सहारे संतुलित कर रहे थे । शायद ८० साल की आयु पार करने पर घुटनों में होने वाली तकलीफ का असर था । मैंने अपना परिचय दिया, तो आत्मीयता से ड्राइंगरूम में ले गए और कुरसी पर बैठने को कह खुद भी बैठ गए ।<br />मैंने बात शुरू की, तो बोले, 'अब कम सुनाई देता है । जरा जोर से बोलना। बातें भी भूल जाता हूं । यह कहते हुए उनके चेहरे पर पीड़ा के भाव आ गए ।<br />तभी उनका पौत्र हलवे की प्लेट रख गया। भारत जी बोले, 'पहले प्रसाद ग्रहण करो, फिर बात करते हैं । कुछ देर बाद बोले, अब यही मेरा कमरा है । सारा समय यहीं बीतता है । जब कवि सम्मेलनों से अच्छी आय हो रही थी, तब यह मकान बनवा लिया था ।<br />मैंने कहा, आपकी कविता राम की जल समाधि की मैंने बड़ी तारीफ सुनी है । उसकी कुछ पंक्तियां सुनाइए। भारत जी की आंखों में चमक आ गई । बोले, राम की जल समाधि सुनकर महादेïवी वर्मा ने कहा था कि इस कविता से राम पर लगे सारे आक्षेप धुल गए हैं । मुंबई में एक कार्यक्रम में इस कविता को सुनकर धर्मवीर भारती ने गले लगा लिया था । भारती जी ने कहा, 'भारत भूषण आपको नहीं पता कि आपने कितनी बड़ी कविता लिखी है । तब पुष्पा जी भी उनके साथ थीं । ये मेरे लिए गौरव के ऐसे पल थे, जिन्हें मैं कभी भुला नहीं सकता । स्मरण करने की मुद्रा में बोले, इस कविता की शुरुआत ऐसे होती है- पश्चिम से ढलका सूर्य/ उठा वंशज सरयू की रेती से/ हारा-हारा रीता-रीता/ निशब्द धरा, निशब्द व्योम, निशब्द अधर/ पर रोम-रोम था टेर रहा सीता-सीता ।<br />भारत भूषण जी के गीतों में जहां प्रेम की व्याकुलता है, वहीं मिलन न होने से उपजी मायूसी का भाव भी । उनकी तसवीर अधूरी रहनी थी कविता भी काफी चर्चित हुई, शायद मैंने गत जनमों में अधबने नीड़ तोड़े होंगे/ चातक का स्वर सुनने वाले बादल वापस मोड़े होंगे/ ऐसा अपराध हुआ होगा फिर जिसकी क्षमा नहीं मिलती/ तितली के पर नोचे होंगे, हिरनी के दृग फोड़े होंगे/ अनगिनत कुछ कर्ज चुकाने थे इसलिए जिंदगी भर मेरे/ तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी ।<br />आठ जुलाई १९२९ को जन्मे भारत भूषण का पूरा जीवन मेरठ में बीता। बीएबी इंटर कॉलेज, मेरठ में वह लंबे समय तक अध्यापक रहे और एक लोकप्रिय कवि के रूप में उन्होंने पूरे देश में अपनी पहचान बनाई । भारत जी सूक्ष्म संवेदनाओं को विराट अभिव्यक्ति देने वाले सामथ्र्यवान गीतकार हैं । उनके अब तक तीन कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं- सागर की सीप, ये असंगति, मेरे चुनींदा गीत ।<br />(अमर उजाला हिंदी दैनिक के दो अक्टूबर २००९ के अंक में आखर पेज पर प्रकाशित)dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-4573289732310443973.post-43355879727594112602009-08-12T12:19:00.000-07:002009-08-12T12:40:46.752-07:00आंसू अगर बिकते कहीं,होता बहुत धनवान मैं<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0pbWdgX2DxldZKLG3ykgxbCdE_6IEJUI_vcSw8ehcAQtVtt1auI9FIyQmDcWyUFB78TeEsI-oDi93F-y9eC-NtuAD6DGpltW1Ou1f1jtkshd2hbUuiMLY5wAU89ejmpUvVFV2U8Ujd3kn/s1600-h/ummeed.jpeg"><img style="margin: 0pt 10px 10px 0pt; float: left; cursor: pointer; width: 143px; height: 95px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg0pbWdgX2DxldZKLG3ykgxbCdE_6IEJUI_vcSw8ehcAQtVtt1auI9FIyQmDcWyUFB78TeEsI-oDi93F-y9eC-NtuAD6DGpltW1Ou1f1jtkshd2hbUuiMLY5wAU89ejmpUvVFV2U8Ujd3kn/s320/ummeed.jpeg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5369164448111229330" border="0" /></a><span style="font-weight: bold;">-डॉ. अशोक प्रियरंजन</span><br />'हर झुर्रियों से झांकते सौ-सौ दिवाकर ओज के, अपना सफर पूरा किया, अब पंख किरणों के थके।Ó 'राजस्थान दर्पणÓ में प्रकाशित इन पंक्तियों के रचयिता मेरठ के साहित्यकार और पत्रकार ८० वर्षीय विष्णु खन्ना को गए एक वर्ष बीत गया । उन्होंने १० अगस्त ०९ को ङ्क्षजदगी के सफर को विराम दिया था । मेरठ के जनजीवन की गहरी समझ रखने वाले विष्णु खन्ना इस क्रांतिधरा की विविध घटनाओं के साक्षी रहे । यह उनका मेरठ के प्रति लगाव ही था कि लंबे समय तक नौकरी दिल्ली में और निवास मेरठ में किया । 'जो भोगा सो गायाÓ कृति के माध्यम से मेरठ की गीत काव्य परंपरा की श्रीवृद्धि करके हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले विष्णुजी साहित्य के ऐसे साधक थे, जिनमें अंत समय तक रचनाधर्मिता के प्रति अद्भुत उत्साह बना रहा । स्वाथ्य खराब होने के बावजूद वह लेखन कार्य में जुटे रहे । उनके लगभग १५० गीत हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए । उन्होंने जीवन के भोगे हुए यथार्थ, विडंबनाओं और दर्शन को गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया । वास्तव में जीवन के यथार्थ को बहुत गहनता से विष्णुजी ने अनुभव किया और उसमें समाहित पीड़ा को पूरी संवेदना के साथ अभिव्यक्त भी किया। उनकी पंक्तियां-'आंसू अगर बिकते कहीं, होता बहुत धनवान मैं, मोती सभी कहते जिन्हें, किसने खरीदा कब इन्हेंÓ, उनके अंर्तमन की पीड़ा को रेखांकित करती हैं । इसी वर्ष प्रकाशित उनकी पुस्तक 'राजस्थान दर्पणÓ कुछ लीक से हटकर थी । इसमें प्रकाशित जीवंत चित्रों पर आधारित विष्णुजी की काव्य पंक्तियों ने जहां राजस्थान के गौरवशाली अतीत के झरोखे खोले हैं, वहीं वर्तमान के अंधेरे-उजाले को भी उकेरा है । अनेक काव्य मंचों पर विष्णुजी के गीत गूंजे । उन्होंने जीवन के विविध पक्षों के काव्य में उकेरा । आधुनिकताबोध से संपृक्त उनकी ये पंक्तियां द्रष्टव्य हैं- 'फाइल जैसी कटी जिंदगी, कभी इधर से कभी उधर से, कुर्सी-कुर्सी आते जाते, टिप्पणियों का बोझ उठाते, कागज जर्जर हुए उम्र के तार-तार हो कटी जिंदगी । Ó समकालीन जाने-माने कवियों से विष्णुजी की बड़ी आत्मीयता रही ।<br />दरअसल विष्णुजी की नौकरी की शुरुआत आकाशवाणी जयपुर से ही हुई । तब उन्होंने राजस्थान की जिंदगी को बहुत करीब से देखा । सन् १९८६ में असिस्टेंट प्रोड्यूसर पद से सेवानिवृत होने के बाद भी वह आकाशवाणी और दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भाग लेते रहे । जयपुर के बाद उनकी तैनाती आकाशवाणी दिल्ली में हुई । आकाशवाणी से फौजियों के लिए प्रसारित कार्यक्रम को जयमाला नाम विष्णु खन्ना ने ही दिया था । बाद में यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ। आकाशवाणी में ही वह प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन के संपर्क में आए । उन्हें १९६६ में आकाशवाणी में पदोन्नति मिली ।<br />विष्णुजी को घूमना बहुत पसंद था । मौका मिलते ही वह संस्कृति और इतिहास से जुड़े स्थलों की यात्रा किया करते थे । उन्होंने अपनी घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के चलते देश के अनेक महत्वपूर्ण स्थलों की संस्कृति और परंपराओं को शब्दबद्ध कर पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जनता तक पहुंचाया । अंतिम दिनों में भी उन्होंने 'अपने-अपने अलबमÓ नामक पुस्तक लिखी जिसमें पर्यटन के माध्यम से उपजे वैचारिक और सांस्कृतिक ज्ञान का समावेश किया गया । यह पुस्तक अभी प्रकाशनाधीन है । विष्णु खन्ना की सर्वाधिक चर्चित पुस्तक है 'दिल्ली बोलती है।Ó प्रथम पुरुष के रूप में १९७५ में प्रकाशित इस पुस्तक में दिल्ली के विभिन्न पक्षों को उभारा गया है । 'मैं मानती हूं मेरे नए-पुराने बोल ही कोलाहल को निरंतर जन्म देते रहे हैं । अब मैं इतना बोल चुकी हूं कि मेरे आंगन में सिर्फ कोलाहल रह गया है। आज जब खुद मुझे अपनी आवाज सुनाई नहीं पड़ रही, आप मेरी आवाज क्या सुनेंगे ।Ó दिल्ली के बारे में उनकी पुस्तक के यह अंश आज भी पूरी तरह प्रासांगिक हैं ।<br />विष्णु खन्ना को अनेक मंचों पर सम्मानित किया गया । उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने वर्ष २००५ के लिए सृजनात्मक लेखन और खोजी पत्रकारिता के लिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विेदी पुरस्कार प्रदान किया। १५ सितंबर २००६ को लखनऊ में आयोजित समारोह में उन्हें पुरस्कृत किया गया। वास्तव में मेरठ कभी विष्णु खन्ना के योगदान को नहीं भुला पाएगा ।dr ashok kumar mishrahttp://www.blogger.com/profile/11257596754346098075noreply@blogger.com10