-डॉ. अशोक प्रियरंजन
'हर झुर्रियों से झांकते सौ-सौ दिवाकर ओज के, अपना सफर पूरा किया, अब पंख किरणों के थके।Ó 'राजस्थान दर्पणÓ में प्रकाशित इन पंक्तियों के रचयिता मेरठ के साहित्यकार और पत्रकार ८० वर्षीय विष्णु खन्ना को गए एक वर्ष बीत गया । उन्होंने १० अगस्त ०९ को ङ्क्षजदगी के सफर को विराम दिया था । मेरठ के जनजीवन की गहरी समझ रखने वाले विष्णु खन्ना इस क्रांतिधरा की विविध घटनाओं के साक्षी रहे । यह उनका मेरठ के प्रति लगाव ही था कि लंबे समय तक नौकरी दिल्ली में और निवास मेरठ में किया । 'जो भोगा सो गायाÓ कृति के माध्यम से मेरठ की गीत काव्य परंपरा की श्रीवृद्धि करके हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले विष्णुजी साहित्य के ऐसे साधक थे, जिनमें अंत समय तक रचनाधर्मिता के प्रति अद्भुत उत्साह बना रहा । स्वाथ्य खराब होने के बावजूद वह लेखन कार्य में जुटे रहे । उनके लगभग १५० गीत हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए । उन्होंने जीवन के भोगे हुए यथार्थ, विडंबनाओं और दर्शन को गीतों के माध्यम से अभिव्यक्त किया । वास्तव में जीवन के यथार्थ को बहुत गहनता से विष्णुजी ने अनुभव किया और उसमें समाहित पीड़ा को पूरी संवेदना के साथ अभिव्यक्त भी किया। उनकी पंक्तियां-'आंसू अगर बिकते कहीं, होता बहुत धनवान मैं, मोती सभी कहते जिन्हें, किसने खरीदा कब इन्हेंÓ, उनके अंर्तमन की पीड़ा को रेखांकित करती हैं । इसी वर्ष प्रकाशित उनकी पुस्तक 'राजस्थान दर्पणÓ कुछ लीक से हटकर थी । इसमें प्रकाशित जीवंत चित्रों पर आधारित विष्णुजी की काव्य पंक्तियों ने जहां राजस्थान के गौरवशाली अतीत के झरोखे खोले हैं, वहीं वर्तमान के अंधेरे-उजाले को भी उकेरा है । अनेक काव्य मंचों पर विष्णुजी के गीत गूंजे । उन्होंने जीवन के विविध पक्षों के काव्य में उकेरा । आधुनिकताबोध से संपृक्त उनकी ये पंक्तियां द्रष्टव्य हैं- 'फाइल जैसी कटी जिंदगी, कभी इधर से कभी उधर से, कुर्सी-कुर्सी आते जाते, टिप्पणियों का बोझ उठाते, कागज जर्जर हुए उम्र के तार-तार हो कटी जिंदगी । Ó समकालीन जाने-माने कवियों से विष्णुजी की बड़ी आत्मीयता रही ।
दरअसल विष्णुजी की नौकरी की शुरुआत आकाशवाणी जयपुर से ही हुई । तब उन्होंने राजस्थान की जिंदगी को बहुत करीब से देखा । सन् १९८६ में असिस्टेंट प्रोड्यूसर पद से सेवानिवृत होने के बाद भी वह आकाशवाणी और दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भाग लेते रहे । जयपुर के बाद उनकी तैनाती आकाशवाणी दिल्ली में हुई । आकाशवाणी से फौजियों के लिए प्रसारित कार्यक्रम को जयमाला नाम विष्णु खन्ना ने ही दिया था । बाद में यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुआ। आकाशवाणी में ही वह प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन के संपर्क में आए । उन्हें १९६६ में आकाशवाणी में पदोन्नति मिली ।
विष्णुजी को घूमना बहुत पसंद था । मौका मिलते ही वह संस्कृति और इतिहास से जुड़े स्थलों की यात्रा किया करते थे । उन्होंने अपनी घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के चलते देश के अनेक महत्वपूर्ण स्थलों की संस्कृति और परंपराओं को शब्दबद्ध कर पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जनता तक पहुंचाया । अंतिम दिनों में भी उन्होंने 'अपने-अपने अलबमÓ नामक पुस्तक लिखी जिसमें पर्यटन के माध्यम से उपजे वैचारिक और सांस्कृतिक ज्ञान का समावेश किया गया । यह पुस्तक अभी प्रकाशनाधीन है । विष्णु खन्ना की सर्वाधिक चर्चित पुस्तक है 'दिल्ली बोलती है।Ó प्रथम पुरुष के रूप में १९७५ में प्रकाशित इस पुस्तक में दिल्ली के विभिन्न पक्षों को उभारा गया है । 'मैं मानती हूं मेरे नए-पुराने बोल ही कोलाहल को निरंतर जन्म देते रहे हैं । अब मैं इतना बोल चुकी हूं कि मेरे आंगन में सिर्फ कोलाहल रह गया है। आज जब खुद मुझे अपनी आवाज सुनाई नहीं पड़ रही, आप मेरी आवाज क्या सुनेंगे ।Ó दिल्ली के बारे में उनकी पुस्तक के यह अंश आज भी पूरी तरह प्रासांगिक हैं ।
विष्णु खन्ना को अनेक मंचों पर सम्मानित किया गया । उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने वर्ष २००५ के लिए सृजनात्मक लेखन और खोजी पत्रकारिता के लिए आचार्य महावीर प्रसाद द्विेदी पुरस्कार प्रदान किया। १५ सितंबर २००६ को लखनऊ में आयोजित समारोह में उन्हें पुरस्कृत किया गया। वास्तव में मेरठ कभी विष्णु खन्ना के योगदान को नहीं भुला पाएगा ।
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10 comments:
विष्णुजी के बारे में अच्छी जानकारी दी।आभार।
विष्णु खन्ना साहेब जैसी शख्शियत को बारम्बार नमन...आपने उनके बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है...धन्यवाद.
नीरज
Naman hai aisi shakshiyat ko ..... achaa laga unke baare mein jaan kar ......
विष्णु जी की और रचनायें भी छापते रहियेगा
PRATHAM RACHNA KE SAATH AAPKA BLOG JAGAT MEN SWAGAT HAI.
मेरी नवीनतम रचनाएँ पढने के लिए http://swapnyogesh.blogspot.com पर क्लिक करें.
विष्णु खन्ना जी के बारे में जानकारी साझा करने के लिए आपका बहुत धन्यवाद!
- सुलभ ( यादों का इंद्रजाल )
बड़ा अच्छा लगा ये आलेख पढ़ना ...आपका लेखन वैसेभी संजीदा होता है , जिसे सरसरी तौरसे नही पढ़ा जा सकता ...!
मुझे ख़ुद विष्णुजी के बारेमे जानकारी नही थी ॥ये आपका भी बड़प्पन है कि , आप ऐसी जानकारी इतनी विनम्रता के साथ दे रहे हैं !
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://lalitlekh.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.com
जानकारी का सुंदर प्रस्तुतीकरण
nice.narayan narayan
Vishnu ji ko naman.
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