-अशोक प्रियरंजन
कृष्ण कुमार 'बेदिलÓ की गजलें जिंदगी की तल्ख सचाईयों को बड़े बेलौस तरीके से उजागर करती हैं । आधुनिक समाज में व्याप्त विसंगतियों, इंसानियत के पतन, मनुष्य के दोहरे चरित्र और विविध कारणों से जिंदगी में पनप रही पीड़ा को उनके शेर बड़ी गहराई से रेखांकित करते हैं । मोम का घर में शामिल गजलें बदलतें समाज के लोगों को आईना दिखाकर उन्हें भविष्य के खतरों से भी सचेत करती हैं । 'चोंच में दाना दबाये है परिंद, उड़ रहा है भीगकर बरसात मेंÓ और 'मोम का एक घर बनाया है, धूप का आज उस पे साया हैÓ-जैसे शेर जिंदगी के संघर्ष को बड़ी बारीकी से परत दर परत खोलते हैं । उनकी गजलों के अनेक शेर राजनीतिक विसंगतियों, सामाजिक रुढिय़ों और मानवीय दुर्बलताओं पर कटाक्ष भी करते हैं और कई समसामायिक ज्वलंत प्रश्नों से साक्षात्कार कराते हैं । इन ८० गजलों में जिंदगी के रंग दिखाई देते हैं । गजलों की भाषिक संरचना में हिंदी और उर्दू के शब्द शामिल हैं और विषयवस्तु की अभिव्यक्ति बड़ी प्रखर है। बेहतरीन शिल्प, प्रभावशाली कथ्य और विविध विषयों के सामाजिक सरोकारों की व्यापक अभिव्यक्ति से यह संग्रह गजल परंपरा में अहम मुकाम बनाने की सामथ्र्य रखता है ।
मोम का घर, कृष्ण कुमार 'बेदिलÓ : महावीर एंड संस, नई दिल्ली, मूल्य : १५० रुपये ।
(अमर उजाला, मेरठ के २३ अक्तूबर के अंक में प्रकाशित )
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