-अशोक प्रियरंजन
जिंदगी के विविध रंगों से रूबरू कराती इन गजलों में मौजूदा दौर केआम आदमी की पीड़ा मुखर है । बदलते दौर में पनप रही समस्याओं, संवेदनहीनता, विसंगितयों, निराशा, अस्तित्व संकट और इंसानियत के संकट को गजलों में रेखांकित किया गया है । 'अजीब सा मौसमÓ में शामिल गजलों में राजन स्वामी ने हिंदी-उर्दू शब्दों का प्रभावशाली प्रयोग करते हुए सूक्ष्म संवेदनाओं को बड़े मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया है । 'बच्चों के अरमानों का कद मेरी हद को लांघ गया, अब मेरा अपने ही घर में आना-जाना मुश्किल हैÓ जैसे शेर नई पीढ़ी की महत्वाकांक्षाओं को रेखांकित करते हैं । 'हरेक शख्स ने कुदरत को इस कदर लूटा, कभी अमीर था, अब है गरीब सा मौसमÓ शेर में पेड़ों केअंधाधुंध कटान की ज्वलंत समस्या पर अंगुली रखी गई है । मानवीय जीवन की विवशताओं, कुर्सी की राजनीति, आदमी के भटकाव, हताशा, महानगर की समस्याओं को भी बड़ी गंभीरता के साथ अभिव्यक्त किया गया है । गजलों के शेर दिल पर दस्तक देते महसूस होते हैं । वस्तुत: राजन स्वामी का ये गजल संग्रह पाठकों के सामने कई सवाल खड़े करते हुए वैचारिक मंथन के लिए विवश कर देता है। कथ्य, शिल्प और भाषा केस्तर पर गजलें मन को सुकून देती हैं और कई संभावनाओं को जागृत करती हैं ।
अजीब सा मौसम, राजन स्वामी : स्वर्ण रामेश्वर पब्लिकेशन्स, मेरठ, मूल्य : ७७ रुपये ।
(अमर उजाला, मेरठ के ३० अक्तूबर २००९ के अंक में प्रकाशित)
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