Saturday, November 14, 2009

सूक्ष्म संवेदनाओं की अभिव्यक्ति

-अशोक प्रियरंजन
इस संग्रह की कविताओं में तीन कवियों ने आधुनिक जीवन की सूक्ष्म संवेदनाओं को अभिव्यक्ति दी है। निर्मल गुप्त की कविताएं कथ्य की सरलता, सहज शिल्प, बिम्ब, प्रतीक, नए मुहावरों के कारण ध्यान खींचती हैं । बड़ी कलात्मकता से उन्होंने मनुष्य और समाज में पनप रहे तनाव और जिंदगी के संघर्ष को रेखांकित किया है । 'नहाती हुई लड़की शीर्षक कविता में वह लिखते हैं- लड़की नहाती है/तो उसके पोर-पोर में समा जाते हैं असंख्य जल-बिंदु/ तब वह स्वत: ही मुक्त हो जाती है गुरुत्वाकर्षण से/ और चल देती है/ हजारों प्रकाश-वर्ष की अनंत यात्रा पर।Ó दूसरे कवि राजन स्वामी की कविताएं आम जिंदगी पर पनप रहे तनाव और सामाजिक मूल्यों के पतन की ओर संकेत करती है । नन्हीं बिटिया की डायरी से में वे लिखते हैं-'हे भगवान, अफसर की गलती हो या पापा की कुंठा, मार मैं ही खाती हूं, कभी कभी लगता है कि दफ्तर पापा नहीं, मैं जाती हूं ।Ó तीसरे कवि दीपक कुमार श्रीवास्तव मनुष्य के अंतद्र्वंद, सामाजिक विडंबनाओं, अकेलेपन और परिस्थितियों से उपजे तनाव को रेखांकित करते हैं । द्वंद्व में वह लिखते हैं-'दोहरी होती गई हर चीज, दोहरी होती जिंदगी के साथ। आस्थाएं, विश्वास, कर्तव्य, आत्मा और फिर उसकी आवाज।Ó सभी तीन कवियों की कविताएं कथ्य की नवीनता के कारण काफी आश्वस्त करती हैं ।
तीन, निर्मल गुप्त, राजन स्वामी, दीपक कुमार श्रीवास्तव : स्वर्ण-रामेश्वर पब्लिकेशन्स मेरठ, मूल्य : ५० रुपये।
(अमर उजाला, मेरठ के १३ नवंबर के अंक में प्रकाशित)

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