-डॉ. अशोक प्रियरंजन
भारतीय समाज में प्रारंभिक काल से शकुन अपशकुन की बड़ी मान्यता रही है। व्यापक समाज शकुनापशकुन का विचार करके ही अपने कार्यों का निष्पादन करता है। डॉ. परमात्मा शरण वत्स ने अपनी पुुस्तक शकुन-अपशकुन में हिंदी साहित्य की विविध कृतियों में इस विषय के प्रसंगों की विवेचना करते हुए शोधपरक दृष्टिकोण से इसकी महत्ता को रेखांकित किया है। उनकी मान्यता है कि दैवी शक्तियां विशिष्ट पशु-पक्षियों की गतिविधियों से भावी शुभ-अशुभ की सूचना प्रदान करती हैं। अंग स्फुरण, स्वप्न और नक्षत्रों आदि की गति के माध्यम से देवी शक्तियों की शुभ-अशुभ इच्छा का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। सात अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में शकुनापशकुनों की व्याख्या, उत्पत्ति, विकास, महत्व तथा वर्गीकरण करके हिंदी काव्य में इनकी स्थापनाओं की विवेचना की गई है। काव्य साहित्य में पशु-पक्षी, कीटों, समाजिक जीवन, शारीरिक-मानसिक अवस्थाओं तथा स्वप्नादि से प्राप्त शकुनापशकुन का शोधपरक अनुशीलन किया गया है। कथानक, भाव योजना, रस योजना और परिस्थिति चित्रण की दृष्टि से भी इनका महत्व निरूपित किया गया है। उपसंहार में विभिन्न कालों में काव्य में शकुन-अपशकुन का तुलनात्मक अध्ययन और नई कविता में इनके प्रयोग की स्थिति और संभावनाओं पर भी विचार किया गया है। इस कृति की महत्ता इस तथ्य में निहित है कि विषय का तर्कसंगत प्रतिपादन व्यापक और बहुआयामी दृष्टिकोण से किया गया है। हिंदी काव्य साहित्य केआदिकाल से लेकर आधुनिक युग तक की रचनाओं में शकुन विचार का विश्लेषण किया गया है। निसंदेह हिंदी काव्य साहित्य के अनुशीलन में डॉ. परमात्मा शरण वत्स की इस कृति की विशिष्ट महत्ता है।
शकुन-अपशकुन, लेखक : डॉ. परमात्मा शरण वत्स, प्रकाशक : अर्चना पब्लिकेशन्स, मेरठ, मूल्य : 500 रुपये।
Friday, January 15, 2010
हिंदी काव्य साहित्य में शकुन-अपशकुन का अनुशीलन
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3 comments:
आभार इस समीक्षा को प्रस्तुत करने का.
साहित्य समाज का ही तो दर्पण होता है .. अच्छी समीक्षा प्रस्तुत की आपने !!
अच्छा संकलन
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